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आ वां॒ वहि॑ष्ठा इ॒ह ते व॑हन्तु॒ रथा॒ अश्वा॑स उ॒षसो॒ व्यु॑ष्टौ। इ॒मे हि वां॑ मधु॒पेया॑य॒ सोमा॑ अ॒स्मिन्य॒ज्ञे वृ॑षणा मादयेथाम् ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā vāṁ vahiṣṭhā iha te vahantu rathā aśvāsa uṣaso vyuṣṭau | ime hi vām madhupeyāya somā asmin yajñe vṛṣaṇā mādayethām ||

पद पाठ

आ। वा॒म्। वहि॑ष्ठाः। इ॒ह। ते। व॒ह॒न्तु॒। रथाः॑। अश्वा॑सः। उ॒षसः॑। विऽउ॑ष्टौ। इ॒मे। हि। वा॒म्। म॒धु॒ऽपेया॑य। सोमाः॑। अ॒स्मिन्। य॒ज्ञे। वृ॒ष॒णा॒। मा॒द॒ये॒था॒म् ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:14» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:14» मन्त्र:4 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब स्त्री-पुरुष के गुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्री-पुरुषो ! (वाम्) आप दोनों जो लोग (वहिष्ठाः) अत्यन्त धारण करनेवाले (रथाः) वाहन (अश्वासः) शीघ्र चलनेवाले (उषसः) प्रातःकाल के (व्युष्टौ) विशिष्ट प्रताप में हैं (ते) वे आप दोनों को (इह) इस संसार में (आ, वहन्तु) अभीष्ट स्थान को पहुँचावें और जो (इमे) ये (हि) जिस कारण (वाम्) आप दोनों के (सोमाः) ऐश्वर्य के सहित पदार्थ (अस्मिन्) इस (यज्ञे) मेल करने योग्य गृहाश्रम में (मधुपेयाय) मधुर गुणों से पीने योग्य के लिये होते हैं, इस कारण उनका इस संसार में सेवन करके (वृषणा) पराक्रमवाले होते हुए आप दोनों (मादयेथाम्) आनन्दित होवें ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे स्त्री पुरुषो ! आप लोग यदि रात्रि के चौथे प्रहर में उठ और आवश्यक कृत्य करके वाहन वा पैरों से सूर्योदय से पहिले शुद्ध वायु देश में भ्रमण करें तो आप लोगों को रोग कभी न प्राप्त होवें, जिससे कि बलिष्ठ और अधिक अवस्थावाले हुए इस गृहाश्रम में बड़े आनन्द को भोगो ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ स्त्रीपुरुषगुणानाह ॥

अन्वय:

हे स्त्रीपुरुषौ ! वां ये वहिष्ठा रथा अश्वास उषसो व्युष्टौ सन्ति ते युवामिहाऽऽवहन्तु। य इमे हि वां सोमा अस्मिन् यज्ञे मधुपेयाय भवन्ति तानिह सेवित्वा वृषणा सन्तौ युवां मादयेथाम् ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) (वाम्) युवयोः (वहिष्ठाः) अतिशयेन वोढारः (इह) अस्मिन् संसारे (ते) (वहन्तु) (रथाः) यानानि (अश्वासः) सद्यो गामिनः (उषसः) प्रातर्वेलायाः (व्युष्टौ) विशिष्टप्रतापे (इमे) (हि) यतः (वाम्) युवयोः (मधुपेयाय) मधुरैर्गुणैः पातुं योग्याय (सोमाः) सैश्वर्याः पदार्थाः (अस्मिन्) (यज्ञे) सङ्गन्तव्ये गृहाश्रमे (वृषणा) वीर्यवन्तौ (मादयेथाम्) आनन्दयतम् ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे स्त्रीपुरुषा ! यूयं यदि रजन्याश्चतुर्थे प्रहर उत्थाय कृताऽवश्यका यानैः पद्भ्यां च सूर्योदयात् प्राक्छुद्धवायुदेशे भ्रमणं कुर्युस्तर्हि युष्मान् रोगा कदाचिन्नागच्छेयुर्येन बलिष्ठा भूत्वा दीर्घायुषस्सन्तोऽस्मिन् गृहाश्रमे पुष्कलमानन्दं भुङ्ध्वम् ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे स्त्री-पुरुषांनो ! तुम्ही जर रात्रीच्या चौथ्या प्रहरी उठून आवश्यक कृत्य करून वाहनाने किंवा पायी सूर्योदयापूर्वी शुद्ध वायूमध्ये भ्रमण केल्यास तुम्हाला कधी रोग होणार नाही. त्यामुळे बलवान व दीर्घायुषी बनून गृहस्थाश्रमात अत्यंत आनंद भोगा. ॥ ४ ॥